मैं दिल्ली में रहती हूं और मैं नवरात्रों के 9 दिन के व्रत किए थे, परंतु अंतिम दिन लड़कियां मिलना मुश्किल हो रही थी तो मैंने प्रसाद बनाकर अपने घर के बाहर गरीबों को देना चालू कर दिया। परंतु वहां देखा कि वहां पर काफी सुंदर-सुंदर लड़कियां बैठी हुई थी और उनकी मां पिताजी सब साथ में थे और उनको मैं एक-एक करके प्रसाद दे रही थी तो सब ठीक था। बाद में धीरे-धीरे वहां पर भीड़ बढ़ने लगे और वे लोग आपस में झपट मानने लगे। वहां पर भीड़ बहुत अधिक थी और मेरा प्रसाद खत्म हो गया था और वह मुझसे मांग रहे थे, परंतु मैं बहुत ही लाचार हो गई थी क्योंकि मेरा प्रसाद खत्म हो गया था।और मैं भी काफी उदास हो गई थी क्योंकि प्रसाद खत्म हो गया था और वह सभी लोग मुझे एक उम्मीद की नजर से देख रहे थे।इस घटना से मैंने यह सीखा कि खाली पेट को ही भोजन की कदर होती है। भर पेट के लोग तो सिर्फ चॉइस रखते हैं
धन्यवाद
निधि
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें