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दिल्ली और दिल्ली में बढ़ता प्रदूषण

 मैं दिल्ली में पिछले एक साल से रहे रह रही हूं। मुझे अच्छा लगता है क्योंकि यहां मेरे सभी रिश्तेदार हैं और मेरा गांव उत्तराखंड पास में भी हैं और मैं अपने घर जा सकती हूं आराम से।परंतु यहां की सबसे बड़ी समस्या है। ट्रैफिक जाम और प्रदूषण, पिछले एक महीने से यहां का एक AQI इंडेक्स 400 से अधिक है जो की काफी खतरनाक है। और जब मैं घर से बाहर निकलती हूं तो मुझे पूरे फेस को ढकना पड़ता है और डबल मास्क पहनना पड़ता है। अगर मैं यह सब नहीं करती हूं तो चेहरे में जलन और सांस लेने में तकलीफ होती है। और यह समस्या केवल मेरी ही नहीं बल्कि पूरे दिल्ली वालों की ही है। कुछ लोग बोलते हैं कि प्रदूषण का कारण पराली  चलना है तो कुछ लोग बोलते हैं कि दीपावली पर पटाखे फोड़ना और पुरानी गाड़ियों के कारण प्रदूषण हो रहा है। कारण कोई सा भी हो परंतु प्रदूषण के कारण प्रत्येक व्यक्ति को समस्याएं झेलना पड़ रहे हैं। परंतु दीपावली के दिन मैंने देखा कि लोग रात के 2:00 बजे तक पटाखे फोड़ रहे थे और वह भी काफी साउंड वाले और काफी प्रदूषित पटाखे फोड़ रहे थे। और जबकि वह सभी लोग पढ़े-लिखे थे और उन्हें भी पता है कि प्रदूषण हो रहा है फिर भी

Anjaneri hill..hanuman birth place nasik trimbak road

 Anjanari hill - अंजनेरी पर्वत जिसे हनुमान की जन्म स्थली माना जाता है।यहां पर हनुमान के बाल रूप के अनेक साक्ष्य मिले हैं।जो महाराष्ट्र के नासिक शहर से 30 km दूर पर स्थित है। मुंबई से 165 km दूर पर स्थित है।मेन रोड से 5 km दूर पर स्थित है। जिसमें 2 km तक अपनी गाड़ी में जा सकते हैं तथा 3 kmखड़ी चढ़ाई है। रास्ता बहुत ही कच्चा है और बहुत ही उबड़ खाबड़ हैं। 5 kmका सफर हमने पैदल ही तय किया।3 kmका सफर तय करने के बाद हमें अंजनी माता ध्यान केंद्र मंदिर मिला।इस मंदिर की यह मान्यता है कि अंजनी माता ने 104 साल शिव की तपस्या की जिससे उन्हें हनुमान की प्राप्ति हुई मंदिर के भीतर अंजनी माता और बाल हनुमान की मूर्तियां हैं।यहां हम ने पूजा-अर्चना की तथा कुछ देर आराम भी किया। पूरे रास्ते में ग्रामीणों द्वारा छोटे-छोटे स्टाल लगाए हुए हैं जिससे खाने की सामग्री और पानी ,चाय की व्यवस्था भी है।इसके बाद हमें 2 km की खड़ी चढ़ाई मिली।यह चढ़ाई बहुत थकान भरी थी। परंतु हमारे भीतर प्रभु को पाने की चाहत व उमंग थी।यहां का मनोहर दृश्य देखकर हमारा मन तृप्त हो गया। और हमारा मन नया जोश से भर गया। और आखिरकार हमें मंदिर के द

एक नजरिया एक उम्मीद

 मैं दिल्ली में रहती हूं और मैं नवरात्रों के 9 दिन के व्रत किए थे, परंतु अंतिम दिन लड़कियां मिलना मुश्किल हो रही थी तो मैंने प्रसाद बनाकर अपने घर के बाहर गरीबों को देना चालू कर दिया। परंतु वहां देखा कि वहां पर काफी सुंदर-सुंदर लड़कियां बैठी हुई थी और उनकी मां पिताजी सब साथ में थे और  उनको मैं एक-एक करके प्रसाद दे रही थी तो सब ठीक था। बाद में धीरे-धीरे वहां पर भीड़ बढ़ने लगे और वे लोग आपस में झपट मानने लगे।  वहां पर भीड़ बहुत अधिक थी और मेरा प्रसाद खत्म हो गया था और वह मुझसे मांग रहे थे, परंतु मैं बहुत ही लाचार हो गई थी क्योंकि मेरा प्रसाद खत्म हो गया था।और मैं भी काफी उदास हो गई थी क्योंकि प्रसाद खत्म हो गया था और वह सभी लोग मुझे एक  उम्मीद की नजर से देख रहे थे।इस घटना से मैंने यह सीखा कि खाली पेट को ही भोजन की कदर होती है। भर पेट के लोग तो सिर्फ चॉइस रखते हैं धन्यवाद  निधि